Geeta from 1 to 6 Chapter गीता अध्याय 1 से 6 तक

Geeta from 1 to 6 Chapter गीता अध्याय 1 से 6 तक

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य हैं जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

विषाद योग व्याख्या; श्लोक 10 व् 11 व्याख्या :-


अपर्याप्तं तत  अस्माकं  बलम  भीष्माभिरक्षितम
अपर्याप्त  है अपनी तरफ का बल जो भीष्म द्वारा रक्षित भी तो है।
पर्याप्तं   तु   इदं  एतेषां  बलम भीमाभिरक्षितं ।।   1/10  ।।
पर्याप्त  इनका यह बल भीम द्वारा रक्षित है 
अयनेषु  च    सर्वेषु   यथाभागम अवस्थिता:
और सभी मोर्चों पर उचित भूभाग पर अवस्थित हुए  
भीष्मं  एव अभिरक्षन्तु भवंत: सर्वे एव हि   ।।  1/11  ।।
भीष्म की ही सभी तरफ से रक्षा करें 

अपार्याप्तम् = अ + परि [ चारों तरफ Around ]+ आप्त [ घिरा हुआ Surrounded ]
तत् = वह; 
आस्माकम्  बलम् = हमारा सेन्य बल ;   
भीष्माभिरक्षित् = भीष्मपितामह द्वारा रक्षित; 
पर्याप्तम् = परि [ चारों तरफ Around ]+ आप्त [ घिरा हुआ Surrounded ] 
तु = और; 
इदम् = यह; 
एतेषाम्  बलम् = = इन लोगों की सेना; 
भीमाभिरक्षितम् = भीम द्वारा रक्षित; 
अयनेषु = मोर्चों पर; 
सर्वेषु = सब; 
यथाभागम् = अपनी अपनी जगह; 
अविस्थता: = स्थित रहते हुए; 
भीष्मम् = भीष्म पितामह की; 
एव = ही; 
अभिरक्षन्तु = सब ओर से रक्षा करें; 
भवन्त: = आपलोग;
सर्वें = सबके सब; 
एव = ही; 
हि = नि:सन्देह; 

अपर्याप्त (दूर दूर तक फैल़ा हुआ) है अपनी तरफ का बल जो भीष्म द्वारा रक्षित भी तो है। पर्याप्त (चारों तरफ से आप्त,घिरा हुआ सा ) इनका यह बल भीम द्वारा रक्षित है और सभी मोर्चों पर उचित भूभाग पर अवस्थित हुए आप सभी भीष्म की ही सभी तरफ से रक्षा करें।


इस श्लोक में पर्याप्त और अपर्याप्त शब्द असमंजस पैदा करते हैं। हम पर्याप को पूरा और अपर्याप्त को अधुरा या कम के भावार्थ में उपयोग करते हैं। कोई राजा अपनी 11 ब्रिगेड को अपर्याप्त और प्रतिपक्षी की 7 ब्रिगेड को पर्याप कैसे कहेगा। यहाँ अ अक्षर का उपयोग हुआ है। अ अक्षर हम ना या नहीं के लिए समझते हैं लेकिन ऐसा नहीं हैं।

जैसे की अज्ञान का अर्थ ज्ञान नहीं होना मानते हैं जबकि ज्ञान नहीं होने के लिए अनभिज्ञता का प्रयोग-उपयोग किया जाता है।अज्ञान का अर्थ खोटा-ज्ञान या गलत जानकारी होता है। 
इसी तरह परी + आप्त का अर्थ है एक सीमित स्थान पर घिरे होना और अपर्याप्त का अर्थ इस से उल्टा, यानी घेरे रहना,घेरे रखना,घेरने में सक्षम इत्यादि होगा।

इससे पूर्व दुर्योधन ने पाण्डव सेना को चहुँमुखी भी कहा था। संख्या बल को जीतने के लिए सांख्य का योग किया जाता है। कृष्ण की सलाह पर धृष्टद्युम्न ने 7 अक्षोहिणी, 7 ब्रिगेड सेना को वृताकार खड़ा किया था जिनके मुख चारों तरफ रखे गए।  इस कारण दुर्योधन को ऐसा लगा कि यह सेना जीतने में सुगम है, क्योंकि इसको घेरा जा सकता है। 

लेकिन कृष्ण यह जानते थे कि इस युद्ध में भाग लेने वाले अन्ततः सभी मारे जायेंगे अतः दोनों पक्षों की हार होगी,जीत उसी की मानी जाएगी जो जीवित बचेगा।

अतः सेना को इस तरह खड़ा किया गया कि युद्ध शुरू होते ही सात ब्रिगेड के रथ जिधर मुख था उधर ही दौड़ पड़े तब बीच में खुला मैदान हो गया जो चारों तरफ से सुरक्षा घेरे से घिरा था और जो सेना एक सीमित दायरे में नजर आ रही थी और घेरने में सुगम लग रही थी वह इतने बड़े क्षेत्र में फ़ैल गई कि उसे घेरना सम्भव नहीं हुआ और उस सुरक्षा घेरे में पांचों पाण्डवों को बचाना था।जिनको बचा लिया गया,बाकी सभी मारे गए।

कृष्ण चूँकि अर्जुन के सारथी थे अतः रथ की लगाम उनके हाथ में थी। जब भी अन्य चारों पाण्डवों पर मारक आक्रमण होता तभी बीच में रखे गए खुले मैदान में कृष्ण, अर्जुन का रथ लेकर सुरक्षा हेतु, पहुँच जाते और अंततः पांचों पाण्डवों को बचाने में सफल रहे और जीत उनके नाम दर्ज हुई।

जब भी प्रतिपक्षी योद्धा नियम की दुहाई देता कि एक योद्धा से एक ही युद्ध करेगा तो कृष्ण का उत्तर होता पहले तुम्हारे पक्ष ने नियमो का उलंघन किया था अतः अब ये नियम अमान्य हो गए।

इस तरह जिस चहुँ मुखी व्यूहरचना के लिए दुर्योधन ने व्यंग किया था कि धृष्टद्युम्न की बुद्धिमता देखो कि एक सीमित दायरे में पर्याप्त कर दिया है उसे तो हमारी अपर्यात सेना सुगमता से घेर लेगी अतः जो जिस मोर्चे पर खड़ा है खड़ा रहे और भीष्म अकेले ही इस सेना को जीत लेंगे अतः आप सभी सेनापति भीष्म की ही रक्षा करें।      



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