Geeta from 1 to 6 Chapter गीता अध्याय 1 से 6 तक

Geeta from 1 to 6 Chapter गीता अध्याय 1 से 6 तक

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य हैं जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

विषाद योग व्याख्या; श्लोक संख्या 21 से 23 तक

अर्जुन-उवाच

सेनयो: उभयो:  मध्ये  रथं  स्थापय  मे अच्युत      ।।  1/21  ।।

अच्युत  !  उभय पक्षी सेना के मध्य मेरे रथ को खड़ा करो ।

यावत्  एतान  निरीक्षे  अहम्  योद्धुकामान  अवस्थितान  

जब तक इन युद्ध की कामना से इकठ्ठे हुए योद्धाओं का निरिक्षण करूँ रथ खड़ा रखना 

कैः  मया  सह  योद्धव्यम  अस्मिन  रणसमुद्यमे    ।।  1/22   ।।

किस किस के साथ मुझे युद्ध करना है, कोन कोन रण में सम उद्द्यत हैं 

योत्स्यमानान  अवक्षे अहम्  ये  एते  अत्र समागताः 

 युद्ध को ही अधिकार मानने वालों को आमने सामने देखुं जो जो यहाँ एक साथ हैं

धार्तराष्ट्रस्य  दुर्बुद्धे: युद्धे  प्रियचिकीर्षवः                ।।  1/23  ।। 

राष्ट्र के प्रति धृति वाले इन दुर्बुद्धि वालों की  युद्ध ही  चित्त को आकर्षित  करने वाली  प्रिय अभिलाषा  हैं।

अर्जुन-उवाच


अच्युत  ! इस उभय पक्षी सेना के मध्य मेरे रथ को खड़ा करो।


इस सेना के दोनो पक्ष उभय -पक्षी है अर्थात जिस तरह पक्षी के दोनों पंख परस्पर पूरक होते हैं उसी तरह गणराज्य व्यवस्था वाला प्राकृतिक  उत्पादक ग्रामीण और वनक्षेत्र  धर्मक्षेत्र कहलाता है क्योंकि वहाँ धन-धान्य का उत्पादन सनातन धर्म चक्र Ecology cycle से होता है तथा साम्राज्य व्यवस्था वाले  राष्ट्र में वेतन भोगी कर्मचारी व्यवस्था और अनुबन्ध व्यवस्था होती है जिसमे काम के एवज में अर्थ की प्राप्ति होती है अतः यह कुरु [कर्म ] क्षेत्र कहा गया है। यह गृहयुद्ध है जिसमे एक तरफ राष्ट्रिय सेन्य बल है तो दूसरी तरफ गणराज्यों के किसान-क्षत्रिय हैं। 

जब तक इन युद्ध की कामना से इकठ्ठे हुए योद्धाओं का निरिक्षण करूँ रथ खड़ा रखना किस किस के साथ मुझे युद्ध करना है, कोन कोन रण में सम उद्द्यत हैं,  युद्ध को ही अधिकार मानने वालों को आमने सामने देखुं जो जो यहाँ एक साथ हैं, राष्ट्र के प्रति धृति वाले इन दुर्बुद्धि वालों की, कि युद्ध ही इनकी प्रिय अभिलाषा  हैं।

महाभारत के गृह युद्ध के बाद चाणक्य के शिष्यत्व में किसान से योद्धा बने चन्द्रगुप्त ने, फिर किसान से योद्धा बने विक्रमादित्य ने,फिर हर्षवर्धन द्वारा शुरू करवाये गए यज्ञ में चार किसान व् वनवासी जातियों से योद्धा बनी रजपूत जाति ने भारत को राष्ट्रवादी धार्तराष्ट्रों से गणराज्य भारत को मुक्त कराया था। इस विषय में आपने सामाजिक पत्रकारिता ब्लॉग में कुछ-कुछ विस्तार से पढ़ लिया होगा। 

 आज भारत पुनः साम्राज्यवादी राष्ट्र और ग्रामीण-वनवासी भारत के बीच उभय-पक्षी स्थिति में आ खड़ा हुआ है। एक तरफ दुर्बुद्धि राष्ट्रिय राजनीति और सरकार है जो सोचती है की युद्ध [ पुलिस या सैन्य कार्यवाही ] से ही विद्रोहियों को काबू में किया जा सकता है। धृतराष्ट्र व् दुर्योधन की तरह इनकी धृति में भी वार्ता और समझोता की शर्तें देश हित में नहीं है। बल्कि किसानों के आन्दोलनों पर  सेन्य कार्यवाही ही चित्ताकर्षक लगती है।


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