अस्माकं तु विशिष्टा: ये तान निबोध द्विजोतम
अपनी तरफ के भी विशिष्ट जो भी हैं इन्हें भी निर्विध्न समझिये द्विजों में उत्तम आचार्य !
नायका: मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान ब्रवीमि ते ।। 1/7 ।।
नायक (हीरो ) जो मेरे तरफ की सेना के हैं उनके संज्ञा नाम बताता हूँ आपको
भवान भीष्म: च कर्ण: च कृप: च समितिंजय:
आप खुद भीष्म और कर्ण और आचार्य कृप जैसे जो अकेले ही इस सीमित सेना पर जय करने वाले हैं
अश्वत्थामा विकर्ण: च सौमदत्ति: तथा एव च ।। 1/8 ।।
अश्वस्थामा और विकर्ण और सोमदत्त के पुत्र भी तथा
अन्ये च बहव: शुरा: मदर्थे त्यक्तजीविता:
अन्य बहुत सारे शूर हैं, मेरे लिए जीवित रहने तक लड़ने वाले
नाना शस्त्र प्रहरणा: सर्वे युद्ध विशारदा: ।। 1/9 ।।
आनेकानेक प्रकार के शस्त्रों से प्रहार करने में निपूण युद्ध विशारद
अपनी तरफ के भी विशिष्ट, जो भी हैं, इन्हें भी निर्विध्न समझिये हे द्विजों में उत्तम आचार्य ! नायक (हीरो ) जो मेरे तरफ की सेना के हैं उनके संज्ञा नाम बताता हूँ आपको:- आप खुद, भीष्म और कर्ण और आचार्य कृप जैसे, जो अकेले ही इस समितिंजय: सीमित सेना / पंचायत-राज-समिति पर जय करने वाले हैं। अश्वस्थामा और विकर्ण और सोमदत्त के पुत्र भी तथा अन्य बहुत सारे शूर हैं, मेरे लिए जीवित रहने तक लड़ने वाले, आनेकानेक प्रकार के शस्त्रों से प्रहार करने में निपूण युद्ध विशारद।
व्याख्या:-
यहाँ आचार्य द्रोण के लिए द्विज शब्द का उपयोग हुआ है। ब्राह्मणों की दो धाराएँ सनातन है। एक अध्यापकों, शिक्षकों की जिन्हें विप्र कहा जाता है जो कुलीन गृहस्त होते हैं अर्थात पिता ही गुरु होता है। दूसरी धारा दीक्षकों-प्रशिक्षकों की होती है। जब सन्तान रूप में पितृ कुल में पैदा होता है और दक्ष व् प्रशिक्षित होने के लिए गुरुकुल में यज्ञ-उपवीत [यज्ञोपवीत] धारण करके शिष्य रूप में दुबारा पैदा होता है, अतः वह दो कुल परम्पराओं में जन्म लेने के कारण द्विज कहलाता है।
पाण्डवों के पास 7 ब्रिगेड सेना थी,जबकि कौरवों के पास 11 ब्रिगेड थी फिर भी दुर्योधन ने कुछ ही नाम गिनाए। बाकी तो जैसे उसने अपनी प्रतिष्ठा और पाण्डवों को भयभीत करने के लिए इकठ्ठी की थी। इनमे भी भीष्म सहित सभी राष्ट्रिय संविधान में बंधे,वेतनभोगी,अथवा सामरिक समझोते के अंतर्गत आये लोग थे।
जिस तरह से राजनीतिज्ञ अनेकानेक तरह के नियम,कानून,कायदे,बजट-प्रावधान इत्यादि शस्त्र चला कर जनसाधारण का धन अपने वेतन और भत्तों में खर्च करते हैं और सीधेसाधे साधूजन को एक जटिल प्रशासनिक व्यवस्था में उलझाये रख कर दीन-हीन-कृपण बनाये रखते हैं वैसा ही वातावरण उस समय अश्वस्थामा और विकर्ण और सोमदत्त के पुत्र तथा अन्य बहुत सारे शूर-वीरों ने जन समीतियों के विरुद्ध बना रखा था।